Dabba Cartel – मुंबई की गलियों में जन्मी महिलाओं की बदलती तकदीर

Dabba Cartel: मुंबई की गलियों से निकलकर एक ऐसी कहानी जो पांच महिलाओं के संघर्ष, साहस और सपनों को दर्शाती है, ‘डब्बा कार्टेल’ Netflix पर रिलीज़ हुई है। यह कहानी शुरू होती है एक साधारण डब्बा सर्विस से, जो धीरे-धीरे एक बड़े ड्रग कार्टेल में तब्दील हो जाती है। पांच महिलाएं, जो अपनी ज़िंदगी की मुश्किलों से लड़ते हुए, इस कार्टेल को चलाने का फैसला करती हैं। लेकिन क्या यह कहानी वाकई उतनी दमदार है जितनी दिखने का वादा करती है? आइए, जानते हैं।

Dabba Cartel
Netflix series ‘Dabba Cartel’ review (Photo: Show’s poster)

कहानी का सार: डब्बा जो बन गया आवाज़

Dabba Cartel‘ की कहानी मुंबई की उन गलियों से शुरू होती है, जहां डब्बा (टिफिन बॉक्स) सिर्फ खाने का बर्तन नहीं, बल्कि शहर की धड़कन और लोगों के सपनों का प्रतीक है। यह डब्बा पांच महिलाओं के लिए आवाज़ बन जाता है, जो अपनी ज़िंदगी में पुरुषों के अत्याचार और उपेक्षा से तंग आ चुकी हैं। शबाना आज़मी, जो इस गैंग की मुखिया ‘बा’ का किरदार निभाती हैं, एक खामोश शेरनी की तरह हैं। उनकी बहू, जिसे शालिनी पांडे ने निभाया है, शुरू में डरपोक और कमजोर दिखती है, लेकिन धीरे-धीरे उसमें बदलाव आता है।

ज्योतिका, निमिषा सजयन और अंजलि आनंद जैसी अभिनेत्रियां भी इस गैंग का हिस्सा हैं, जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए इस कार्टेल को चलाने का फैसला करती हैं। लेकिन क्या यह सफर उनके लिए आसान होगा? यही इस कहानी का मुख्य मकसद है।

कहानी का मजबूत पक्ष: किरदार और उनका संघर्ष

शबाना आज़मी का अभिनय इस सीरीज़ की सबसे बड़ी ताकत है। वह बिना एक शब्द बोले, अपने चेहरे के भावों से ही पूरी कहानी कह देती हैं। उनकी आँखों में छुपा गुस्सा और दर्द आपको उनके किरदार से जोड़ देता है। शालिनी पांडे, ज्योतिका और निमिषा सजयन भी अपने-अपने किरदारों को जीवंत करने में सफल रही हैं। हर किरदार की अपनी एक पीड़ा है, अपना एक सपना है, जो उन्हें इस कार्टेल में शामिल होने के लिए प्रेरित करता है।

Dabba Cartel कहानी का कमजोर पक्ष: भटकती हुई पटकथा

हालांकि, कहानी का सबसे बड़ा नुकसान इसकी पटकथा है। सीरीज़ के पहले दो एपिसोड तो काफी दिलचस्प हैं, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, यह एक उलझी हुई गुत्थी बन जाती है। नए प्लॉट लाइन्स का बार-बार जुड़ना दर्शकों को कहानी से जोड़े रखने के बजाय उलझा देता है। गजराज राव, साई ताम्हनकर और जिस्सू सेनगुप्ता जैसे किरदारों का फार्मास्यूटिकल स्कैम से जुड़ना भी कहानी को और जटिल बना देता है।

डब्बा: मुंबई की आत्मा या सिर्फ एक प्रोप?

डब्बा, जो मुंबई की संस्कृति का एक अहम हिस्सा है, इस सीरीज़ में पांच महिलाओं की आवाज़ बन जाता है। लेकिन क्या यह डब्बा वाकई मुंबई की आत्मा को दर्शाता है? ‘द लंचबॉक्स’ में इरफान खान और निम्रत कौर ने जिस तरह से डब्बे को अपने दिल की भाषा बनाया था, वह यहां नदारद है। यहां डब्बा सिर्फ एक प्रोप की तरह इस्तेमाल किया गया है, जो कहानी को गहराई देने में नाकाम रहता है।

क्लाइमैक्स: उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा

सीरीज़ का आखिरी एपिसोड, जो एक घंटे 13 मिनट का है, आपको चौंकाने के बजाय उबाने लगता है। क्लाइमैक्स इतना पूर्वानुमानित है कि आप सिर्फ यह सोचते हैं कि कब यह सीरीज़ खत्म होगी। यहां तक कि सीरीज़ का अंत भी आपको कोई खास एहसास नहीं दे पाता।

निष्कर्ष: क्या यह Dabba Cartel सीरीज़ देखने लायक है?


Dabba Cartel‘ एक ऐसी कहानी है जो शुरू में तो आपका ध्यान खींचती है, लेकिन धीरे-धीरे आपको ऊबा देती है। शबाना आज़मी का अभिनय और मुंबई की गलियों का सुंदर चित्रण इस सीरीज़ को देखने का एकमात्र कारण है। लेकिन अगर आप एक तेज़-तर्रार और दमदार कहानी की उम्मीद कर रहे हैं, तो यह सीरीज़ आपको निराश कर सकती है।

तो क्या आपको ‘डब्बा कार्टेल’ देखनी चाहिए? अगर आप शबाना आज़मी के अभिनय और महिलाओं के संघर्ष की कहानी देखना चाहते हैं, तो हाँ। लेकिन अगर आप एक बेहतरीन पटकथा और रोमांचक क्लाइमैक्स की उम्मीद कर रहे हैं, तो शायद यह सीरीज़ आपके लिए नहीं है।

क्या आपने ‘डब्बा कार्टेल’ देखी है? अपने विचार कमेंट में जरूर शेयर करें! ऐसी ही और जानकारी केलिए हमारे वेबसाइट को जरूर याद रखे

Leave a Comment