Dhadak 2 Reviews: त्रिप्ती डिमरी और सिद्धांत चतुर्वेदी की दमदार परफॉर्मेंस

Dhadak 2 Reviews: कभी-कभी कोई फिल्म सिर्फ एक कहानी नहीं होती, बल्कि वो समाज के सामने आईना बनकर खड़ी हो जाती है। धड़क 2 ऐसी ही एक फिल्म है। अगर आप इसे सिर्फ Dhadak 2 Reviews पढ़कर एक प्रेमकथा समझने की गलती करते हैं, तो यह फिल्म आपको हैरान कर देगी। यह एक दलित छात्र की यात्रा है, जिसमें सपनों की उड़ान भी है और समाज की बंदिशों से टकराव भी।

नीलेश की शुरुआत और संघर्ष

नीलेश (सिद्धांत चतुर्वेदी) अपने परिवार का पहला लड़का है जो लॉ कॉलेज में दाखिला लेता है। भले ही उसके चेहरे पर आत्मविश्वास हो, लेकिन समाज उसे हर कदम पर उसकी जाति याद दिलाता है। ‘कोटा’ शब्द उसके पहले ही दिन ताना बनकर उसके सामने आता है। Dhadak 2 Reviews में इस बात को प्रमुखता से दर्शाया गया है कि कैसे एक प्रतिभाशाली छात्र को उसकी पहचान से काटा नहीं जा सकता।

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कटाक्ष जो सच्चाई को उजागर करते हैं

जब नीलेश अपने मोहल्ले में एक कानूनी केस पर चर्चा करता है जिसमें लोग ज़िंदा रहने के लिए एक-दूसरे को खा जाते हैं, तब एक व्यक्ति कहता है, “हमें तो नहीं खाएंगे।” यह एक मज़ाक लगता है, पर इसकी गहराई जातिगत सोच को बेनकाब करती है। यही वो दृश्य है जो Dhadak 2 Reviews को आम हिंदी फिल्मों से अलग बनाता है।

प्रेम, पहचान और सामाजिक टकराव

विदि (त्रिप्ती डिमरी) और नीलेश की केमिस्ट्री सादगी से भरी है, लेकिन जैसे-जैसे परिवार की जातिवादी सोच सामने आती है, यह रिश्ता मुश्किलों में पड़ता है। कॉलेज में स्कॉलरशिप और फेलोशिप को लेकर हो रही बहस, रोहित वेमुला की याद दिलाती है। Dhadak 2 Reviews में इन घटनाओं को बिना किसी भाषणबाजी के, बेहद प्रभावी ढंग से पिरोया गया है।

परियेरुम पेरूमाल’ से, लेकिन पहचान अपनी

हालांकि फिल्म तमिल क्लासिक Pariyerum Perumal से प्रेरित है, लेकिन निर्देशक शाज़िया इक़बाल ने इसे एक अलग आत्मा दी है। फिल्म की गति धीमी है, लेकिन हर दृश्य सोचने पर मजबूर करता है। Dhadak 2 Reviews में इस बात का ज़िक्र आता है कि कैसे फिल्म सच्चाई को दर्शाने से पीछे नहीं हटती।

अभिनय और निर्देशन की ताकत

सिद्धांत चतुर्वेदी का अभिनय फिल्म की आत्मा है। उनका दर्द, उनकी मजबूरी और उनकी जिद – सब कुछ आंखों से झलकता है। त्रिप्ती डिमरी विदि के रूप में भी शानदार रही हैं। और सौरभ सचदेवा की रहस्यमयी उपस्थिति फिल्म को और भी गहरा बनाती है।

‘धड़क 2’ नाम क्यों?

फिल्म का नाम ‘धड़क 2’ रखना सबसे बड़ी भूल साबित हो सकता है। यह फिल्म 2018 की ‘धड़क’ जैसी रोमांटिक कहानी नहीं है, बल्कि एक कड़वी सच्चाई है। Dhadak 2 Reviews में इस बात पर भी चर्चा होती है कि क्यों यह नाम फिल्म के गंभीर संदेश के साथ मेल नहीं खाता।

Dhadak 2 क्यों देखें?

धड़क 2 सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक अनुभव है। यह एक ऐसी कहानी कहती है जो अक्सर सिनेमा में नहीं दिखाई जाती। यह फिल्म समाज की उस परत को खोलती है जिसे हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं। Dhadak 2 Reviews इस फिल्म को हिंदी सिनेमा में एक जरूरी बदलाव की तरह देखती हैं।

Disclaimer: यह लेख केवल जानकारी और समीक्षा के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें व्यक्त विचार किसी व्यक्ति, समुदाय या संस्था को ठेस पहुँचाने के लिए नहीं हैं।

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